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Fri, 27th Dec
फ्री पानी देने का दावा और दिल्ली का जल संकट: आम आदमी पार्टी पर सवाल
फ्री पानी देकर एोल पीटने वाली आम आदमी पार्टी ने दिल्ली की जनता को किस कदर ठगा है ओर दिल्ली की जनता किस कदर पानी का संकट झेल रही है। आप इन कुछ घटनाओं से समझ सकते है।
जून 2024 में, दिल्ली जल बोर्ड के कार्यालय पर प्रदर्शनकारियों ने हमला किया, जिसके परिणामस्वरूप कार्यालय की खिड़कियाँ तोड़ दी गईं। सरकार के खिलाफ विरोध प्रदर्शन किया था। इसी तरह, कई क्षेत्रों में पानी की कमी के कारण लोग सड़कों पर उतर आए, जिससे स्थिति और भी बिगड़ गई।
अक्टूबर 2024 में, लुटियंस दिल्ली के प्रमुख क्षेत्रों में पानी की आपूर्ति बाधित हो गई, जिसमें सरकारी मुख्यालय भी शामिल थे। यमुना नदी में बढ़ते प्रदूषण के कारण 27 क्षेत्रों में पानी की उपलब्धता प्रभावित हुई।
इसके अलावा, दिसंबर 2024 में, दिल्ली जल बोर्ड ने दक्षिण दिल्ली के कई क्षेत्रों में सुबह के समय पानी की आपूर्ति रोकने की घोषणा की, जिससे निवासियों को और भी कठिनाइयों का सामना करना पड़ा।
मुफ्त जल की रेवड़ी बांटने से दिल्ली जल बोर्ड की हालत खस्ता हो चुकी है। या तो दिल्ली में गंदा जल आ रहा है या नहीं आ रहा है। दिल्ली के हर इलाके में जलसंकट की स्थिति है।
उत्तरी दिल्ली के कई इलाके, जैसे कि रोहिणी और सिविल लाइंस, पानी की कमी से जूझ रहे हैं। वहीं, दक्षिणी दिल्ली के इलाकों जैसे कि चितरंजन पार्क और लोधी कॉलोनी में भी पानी की सप्लाई नियमित नहीं हो रही है। इस स्थिति ने लोगों को टैंकरों पर निर्भर बना दिया है, जिससे टैंकर माफिया का उदय हुआ है। Read More…
Mon, 23th Dec
राहुल गांधी की ‘असंसदीय’ आक्रामकता के राजनीतिक मायने
संसद परिसर में हुई हिंसक झड़प ने कांग्रेस नेता और नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी की असली चाल और चरित्र को सामने ला दिया है। इस घटना में भाजपा के दो सांसद, प्रताप चंद्र सारंगी और मुकेश राजपूत, गंभीर रूप से घायल हुए हैं। राहुल गांधी ने इन सांसदों को धक्का देकर गिरा दिया, जिससे उन्हें चोटें आईं। यह झड़प तब हुई जब भाजपा सांसद प्रदर्शन कर रहे थे और राहुल गांधी एवं अन्य कांग्रेस सांसद उनके सामने आ गए।
चुनाव में जनता का विश्वास न जीत पाने की कुंठा और इंडिया गठबंधन के नेताओं द्वारा राहुल गांधी की लीडरशिप पर लगातार सवाल उठाने के बाद ऐसा लगता है कि कांग्रेस के युवराज अपना मानसिक संतुलन पूरी तरह खो चुके हैं। यह घटना साबित करती है कि कांग्रेस कैसे अपनी जिम्मेदारियों से भागने और दूसरों पर आरोप लगाने में माहिर हो गई है।
हाल के चुनाव परिणामों ने कांग्रेस पार्टी की स्थिति को गंभीर रूप से कमजोर कर दिया है। महाराष्ट्र, झारखंड, हरियाणा और जम्मू-कश्मीर में मिली हार ने न केवल उनकी राजनीतिक ताकत को चुनौती दी है, बल्कि यह भी साबित किया है कि राहुल गांधी की नेतृत्व क्षमता पर सवाल उठने लगे हैं। जनता का विश्वास खोने के साथ-साथ कांग्रेस के भीतर भी उनके नेतृत्व को लेकर असंतोष बढ़ रहा है।
इंडिया गठबंधन ने भी राहुल गांधी की नेतृत्व शैली की आलोचना की है, जिससे यह स्पष्ट होता है कि अब कोई भी उन्हें गंभीरता से नहीं ले रहा है। उनकी अपारदर्शिता और असंगठित रणनीतियों ने पार्टी को और अधिक अस्थिर बना दिया है। भाजपा नेताओं का कहना है कि राहुल गांधी का आचरण और उनकी राजनीतिक सोच इस बात का संकेत हैं कि वे भारतीय राजनीति में एक प्रभावी नेता बनने के लिए तैयार नहीं हैं। इस घटना से उनकी छवि को और गहरा धक्का लगा है। उनकी छवि विदूषक वाली तो पहले से ही थी, अब उनकी छवि गुंडागर्दी वाली बन गई है।
Tue, 17th Dec
क्या ‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ : मोदी 3.0 का सबसे बड़ा मास्टरस्ट्रोक
आजादी के बाद के शुरुआती दो दशकों तक भारत में लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ कराए जाते थे। 1951-52 की सर्दियों में हुए पहले आम चुनाव से लेकर 1967 तक, देश ने लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के चुनावों को एक साथ होते देखा। लेकिन बाद में राजनीतिक और प्रशासनिक जटिलताओं के कारण इस व्यवस्था को समाप्त कर दिया गया।
अब, 62 साल बाद, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अगुवाई में ‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ (एक राष्ट्र, एक चुनाव) का विचार फिर से चर्चा में है। अगर इसे लागू किया गया, तो यह भारत के लोकतंत्र में एक ऐतिहासिक बदलाव साबित होगा और मोदी 3.0 का सबसे बड़ा मास्टरस्ट्रोक बन सकता है।
‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ पर मोदी की प्रतिबद्धता
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की नेतृत्व क्षमता और दूरदर्शिता ने ‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ के विचार को वास्तविकता में बदलने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम उठाए हैं। यह विचार केवल एक चुनावी प्रणाली नहीं है, बल्कि यह देश के राजनीतिक और प्रशासनिक ढांचे में स्थिरता लाने का एक प्रयास है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस मुद्दे को उठाते समय बार-बार किया है कि यह स्पष्ट बार-बार चुनाव होने से विकास कार्यों में रुकावट आती है और संसाधनों का सही उपयोग नहीं हो पाता।
उनकी सरकार ने पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में एक समिति का गठन किया, जिसने 18,626 पन्नों की विस्तृत रिपोर्ट प्रस्तुत की। इस रिपोर्ट में ‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ को लागू करने के लिए आवश्यक संवैधानिक संशोधनों का सुझाव दिया गया है। मोदी का यह संकल्प न केवल उन्हें एक दूरदर्शी नेता के रूप में स्थापित करता है, बल्कि यह भी दर्शाता है कि वे भारत के राजनीतिक परिदृश्य को स्थिरता प्रदान करने के लिए कितने गंभीर हैं।
मोदी सरकार 2029 से पहले इस विचार को लागू करने की योजना बना रही है। इसका मतलब होगा कि लोकसभा और राज्यों की विधानसभाओं के चुनाव एक साथ कराए जाएंगे। यह प्रधानमंत्री मोदी के लंबे समय से चले आ रहे विजन का हिस्सा है। दरअसल, जब मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री थे, तभी से उन्होंने ‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ की वकालत करनी शुरू कर दी थी।
2014 में प्रधानमंत्री बनने के बाद भी, मोदी ने कई मौकों पर यह मुद्दा उठाया। उनका मानना है कि बार-बार चुनाव होने से जनता के पैसे की बर्बादी होती है और विकास कार्य बाधित होते हैं।
इस साल एक इंटरव्यू में मोदी ने कहा था, “मैं हमेशा कहता हूं कि चुनाव केवल तीन-चार महीने के लिए होने चाहिए। राजनीति पांच साल तक नहीं चलनी चाहिए। इससे लॉजिस्टिक्स और धन की बचत होगी।” Read more…
Fri, 13th Dec
क्या अरविंद केजरीवाल को हार का डर सता रहा है?
दिल्ली विधानसभा चुनाव के नजदीक आते ही राजनीति में हलचल तेज हो गई है। आम आदमी पार्टी ने अपनी उम्मीदवारों की दो सूची जारी कर दी हैं, लेकिन इस पर कई सवाल उठ रहे हैं, जिनका जवाब पार्टी के पास नहीं है। अरविंद केजरीवाल, जो हमेशा अपनी सीट को लेकर स्पष्ट रहते थे, इस बार खामोश क्यों हैं?
उनका नाम दोनों ही सूचिंयों में नहीं है। इसके अलावा वत्रमान मुख्यमंत्री आतिशी मार्लेना का नाम भी सूची में नहीं है। अभी तक केजरीवाल ने नई दिल्ली सीट से लड़ने की घोषणा नहीं की। क्या यह संकेत है कि वह अपनी पारंपरिक सीट पर खतरा महसूस कर रहे हैं?
उनको डर लग रहा है। क्या सेनापति” युद्ध से पलायन की सोच रहा है। लेकिन केजरीवाल और आतिशी की चुप्पी ने सवाल खड़े कर दिए हैं। नई दिल्ली और कालकाजी दोनों सीटें आम आदमी पार्टी का किला मानी जाती थीं, लेकिन इस बार पार्टी के शीर्ष नेता खुद वहां से लड़ने से कतराते दिख रहे हैं।
वे “सुरक्षित“ सीट तलाश रहे हैं? इस असमंजस ने उनकी राजनीतिक विश्वसनीयता पर सवाल खड़े कर दिए हैं। ऐसा लगता है उन्हें हार का डर सता रहा है। उनको अपनी सरकार जाती हुई दिखाइ दे रही हैं। मेरे ऐसा सोचने के कुछ साफ कारण है-
स्लम इलाकों में गुस्सा बढ रहा है। अरविंद केजरीवाल का तिलस्म टूट रहा है। दिल्ली के झुग्गी बस्तियां परंपरागत तौर पर आम आदमी पार्टी का मजबूत वोट बैंक हुआ करते थे।
लेकिन यह किला ढह रहा है। स्लम में रहने वाले भी अब पार्टी के खिलाफ खुलकर नाराजगी जाहिर कर रहे हैं। इन इलाकों में अरविंद केजरीवाल सरकार ने जिस तरह वादों का पुलिंदा बांधा था, वह अब “फ्री वादों“ से लोगों का भरोसा टूटता दिखाई दे रहा है। और पढ़ें …
Mon, 09th Dec
दिल्ली के जननायकः मनोज कुमार जैन, एक प्रेरक नेतृत्व की कहानी
दिल्ली की गलियों से लेकर राष्ट्रीय मंच तक, समाज सेवा और राष्ट्र निर्माण के प्रति समर्पण के प्रतीक, मनोज कुमार जैन का जीवन संघर्ष, सेवा और प्रेरणा की एक अद्भुत कहानी है। एक साधारण परिवार में जन्मे इस असाधारण व्यक्तित्व ने अपनी मेहनत, निष्ठा और समाज के प्रति अद्वितीय समर्पण से खुद को लोगों का नेता और जननायक सिद्ध किया है।
संस्कारों में बसा समाजसेवा का बीज
23 फरवरी, 1969 को दिल्ली के दरियागंज में जन्मे मनोज कुमार जैन के बचपन में ही राष्ट्रसेवा और सामाजिक जिम्मेदारी का बीज बोया गया। उनके पिता, श्री महेश कुमार जैन, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सक्रिय सदस्य थे।
संघ की शाखाओं में बिताए गए दिन, कलश यात्राओं में हिस्सा लेना और बचपन से ही समाज के मुद्दों को समझने की शुरुआत ने उनकी सोच और व्यक्तित्व को गहराई से प्रभावित किया।
उनकी शिक्षा इंटरमीडिएट तक पूरी हुई, लेकिन शिक्षा से भी अधिक प्रभाव उनके पारिवारिक संस्कारों और संघ के प्रशिक्षण का था। उनकी शुरुआती जागरूकता ने उन्हें न केवल राजनीति के प्रति जागरूक किया, बल्कि समाज सेवा को अपने जीवन का आधार बनाया। और पढ़ें …
Fri, 29th Nov
वक्फ बोर्ड: क्या है, इसमें हो रहे अनियमितता के आरोप और वक्फ (संशोधन) विधेयक का महत्व
वक्फ बोर्ड मुस्लिम समुदाय की धार्मिक और कल्याणकारी संपत्तियों के प्रबंधन के लिए गठित संस्था है। इसका उद्देश्य अल्लाह के नाम पर दान की गई संपत्तियों का सदुपयोग सुनिश्चित करना है। भारत में सेंट्रल वक्फ काउंसिल और 32 राज्य वक्फ बोर्ड लाखों एकड़ जमीन की देखरेख करते हैं।
हालांकि, वक्फ बोर्डों पर अनियमितता और दुरुपयोग के गंभीर आरोप लगे हैं। वक्फ अधिनियम, 1995 की धारा 40 का दुरुपयोग करते हुए संपत्तियों को जबरन वक्फ घोषित किया गया, जिससे कानूनी विवाद और सामुदायिक तनाव बढ़ा। मुतवल्लियों की नियुक्तियों में भ्रष्टाचार और बड़े पैमाने पर जमीनों को वक्फ संपत्ति घोषित करने के मामले भी सामने आए।
इन समस्याओं के समाधान के लिए वक्फ (संशोधन) विधेयक का प्रस्ताव महत्वपूर्ण है। यह विधेयक धारा 40 को समाप्त कर संपत्ति निर्धारण का अधिकार कलेक्टर को देगा। प्रबंधन में गैर-मुस्लिम सदस्यों को शामिल करने और केंद्रीय सरकार को निगरानी के अधिकार देने से पारदर्शिता बढ़ेगी।
यह विधेयक वक्फ संपत्तियों के दुरुपयोग पर रोक लगाकर न्यायपूर्ण प्रबंधन सुनिश्चित करेगा और सांप्रदायिक सौहार्द बनाए रखने में मददगार होगा। यह कदम विकास और धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांतों की दिशा में एक महत्वपूर्ण पहल है।
Source: Times of India, Aaj Tak, India Today
Wed, 27th Nov
वक्फ संशोधन विधेयक पर जेपीसी की बैठक में विवाद, कार्यकाल बढ़ाने पर सहमति
नई दिल्ली: वक्फ (संशोधन) विधेयक, 2024 पर गठित संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) की बैठक में बुधवार को बड़ा विवाद देखने को मिला। विपक्षी सांसदों ने समिति की कार्यप्रणाली को लेकर आपत्ति जताई और बैठक से वाकआउट कर दिया। उनका आरोप था कि समिति अध्यक्ष जगदंबिका पाल ने रिपोर्ट को जल्दबाजी में 29 नवंबर तक संसद में प्रस्तुत करने का फैसला किया, जबकि अभी कई महत्वपूर्ण हितधारकों और राज्य वक्फ बोर्डों से चर्चा बाकी है।
विपक्षी दलों का कहना है कि यह प्रक्रिया अधूरी और पक्षपातपूर्ण है। कांग्रेस सांसद गौरव गोगोई और तृणमूल कांग्रेस के कल्याण बनर्जी ने समिति पर आरोप लगाया कि यह एक “मजाक” बन गई है। उन्होंने दावा किया कि अध्यक्ष सरकार के दबाव में काम कर रहे हैं।
बीजेपी सांसद और समिति सदस्य अपराजिता सारंगी ने पुष्टि की कि समिति लोकसभा अध्यक्ष से बजट सत्र 2025 तक रिपोर्ट जमा करने की समय सीमा बढ़ाने का अनुरोध करेगी।
विधेयक का उद्देश्य वक्फ बोर्डों की पारदर्शिता और जवाबदेही बढ़ाना है, लेकिन विपक्षी सांसदों ने इसे प्रक्रिया के साथ न्याय न होने का आरोप लगाया। कई राज्यों और हितधारकों से चर्चा अधूरी होने के कारण विधेयक पर व्यापक सहमति नहीं बन पाई है।
Source: Times of India
Tue, 26th Nov
मोदी ने कांग्रेस के हथियार से किया पलटवार, ‘संविधान खतरे में’ को बनाया निशाना
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कांग्रेस के लंबे समय से इस्तेमाल हो रहे नारे “संविधान खतरे में है” को पलटते हुए उसे कांग्रेस पर ही निशाना साधने का हथियार बना लिया है। महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में भाजपा की बड़ी जीत के बाद, पीएम मोदी ने “बाबासाहेब का संविधान” का उल्लेख कर कांग्रेस पर तीखा हमला किया। मोदी ने शनिवार को भाजपा मुख्यालय में कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए कहा, “कांग्रेस ने वोट बैंक की राजनीति के लिए संविधान के साथ खिलवाड़ किया। बाबासाहेब अंबेडकर के संविधान में वक्फ कानून का कोई स्थान नहीं है, लेकिन कांग्रेस ने इसे अपने स्वार्थ के लिए बढ़ावा दिया।” उन्होंने आरोप लगाया कि कांग्रेस ने 2014 के सत्ता से बाहर होने से पहले कई संपत्तियां वक्फ बोर्ड को सौंप दीं। मोदी ने गांधी परिवार पर हमला करते हुए कहा कि कांग्रेस ने सत्ता की भूख में संविधान के धर्मनिरपेक्ष मूल्यों को नष्ट किया। उन्होंने खुद को संविधान का संरक्षक बताते हुए कहा कि भाजपा ही संविधान की सच्ची रक्षक है। संसद के शीतकालीन सत्र में वक्फ संशोधन बिल को लेकर गर्म बहस की संभावना है। इस मुद्दे पर मोदी ने कांग्रेस को बैकफुट पर धकेलते हुए, “संविधान खतरे में है” के नारे को नया मोड़ दिया है।
Source: India Today
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