महाकुंभ 2025: परंपरा और आधुनिकता का संगम

महाकुंभ आखिरकार समाप्त हो गया। महाशिवरात्रि को इसका आखिरी दिन था। 45 दिनों तक चलने वाले इस सबसे बड़े धार्मिक आयोजन ने साबित कर दिया कि यह न केवल भारत बल्कि पूरे ग्रह का सबसे बड़ा आयोजन था। प्रयागराज महाकुंभ की सफलता पर गदगद उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा, “अकेले प्रयागराज में पिछले 45 दिनों में 66 करोड़ 30 लाख पर्यटक और श्रद्धालु आ चुके हैं।

 प्रयागराज महाकुंभ ने उत्तर प्रदेश में आध्यात्मिक पर्यटन के पांच गलियारे उपलब्ध कराए। इनमें प्रयागराज से मिर्जापुर और काशी, प्रयागराज से अयोध्या और गोरखपुर, प्रयागराज से लालापुर, राजापुर और चित्रकूट, प्रयागराज से लखनऊ और नैमिषारण्य और प्रयागराज से बुंदेलखंड एक्सप्रेसवे के रास्ते मथुरा-वृंदावन होते हुए शुक्रताल गलियारे शामिल हैं।”

इन पांचों गलियारों में पिछले डेढ़ महीने में देश-दुनिया से लाखों की संख्या में श्रद्धालु आए। 

महाकुंभ मेले के दौरान 45 दिनों में 100 देशों के लोग प्रयागराज पहुंचे, जिनमें 74 देशों के उच्चायुक्त और राजदूत शामिल हैं। इसके अलावा, 12 देशों के मंत्रियों और राष्ट्राध्यक्षों की उपस्थिति भी दर्ज की गई। हमने चुनावी रैलियां बहुत देखी हैं, जहां पैसे और प्रलोभन देकर लोगों की भीड़ बुलाई जाती है। लेकिन यह भगवान की रैली थी। ईश्वर ने दिखाया कि उनकी रैली कितनी बड़ी हो सकती है।

प्रयाग कुंभ के अनुभव पर आधारित एक अनन्य दृष्टि विख्यात अन्वेषी पत्रकार मार्क टली की भी है। अपनी चर्चित पुस्तक ‘नो फुलस्टॉप इन इंडिया’ में वह लिखते हैं- ‘कुंभ मेले को दुनिया का सबसे बड़ा धार्मिक पर्व कहा जाता है, लेकिन वास्तव में यह कोई ठीक-ठीक नहीं जानता कि यह कितना बड़ा है। शायद भगवान ही उनका हिसाब रखता है, जो इलाहाबाद में कुंभ के दौरान अपने पाप धोते हैं।’ वह जब ऐसा कहते हैं तो गलत नहीं कहते हैं।

प्रयागराज में श्रद्धालुओं का करोड़ों लोगों का सैलाब संगम के कोने-कोने में काले बादलों की तरह फैला नजर आ रहा था। इतनी बड़ी भीड़ जुटाना सिर्फ भगवान के बूते की ही बात थी। हर अनुमान ध्वस्त हो गए। वहां कोई पागलपन या उन्माद नहीं था। बस आस्था के प्रति एक स्थिर विश्वास था। श्रद्धालुओं की बड़ी संख्या गांवों से आने वालों की थी। उनकी आस्था ने उन्हें यह साहस दिया कि वे अफवाहों की परवाह किए बगैर यात्रा के सारे कष्टों को झेलते हुए मीलों पैदल चलकर स्नान के लिए पहुंच पाएं। दुनिया के किसी अन्य देश में कुंभ मेले जैसा कोई दृश्य मुमकिन नहीं है।

मेले का सफलतापूर्वक संचालन भारत की अक्सर आलोचना पाने वाली प्रशासन व्यवस्था की बड़ी जीत थी, लेकिन यह भारतीय जनता की कहीं बड़ी जीत थी। प्रयागराज में आयोजित महाकुंभ 2025 अपने समापन के बाद भारतीय संस्कृति, आध्यात्मिकता और आधुनिकता के अद्भुत संगम के रूप में याद किया जा रहा है। यह आयोजन न केवल एक धार्मिक उत्सव था, बल्कि भारत की प्राचीन परंपराओं और आधुनिक तकनीक का एक जीवंत उदाहरण बन गया। महाकुंभ 2025 ने भारतीय संस्कृति और आध्यात्मिक मूल्यों को नई ऊंचाइयों तक पहुंचाया और इसे हिंदू समाज के लिए गौरव का विषय बना दिया। इस आयोजन ने साबित किया कि भारत अपनी जड़ों से जुड़े रहते हुए भी आधुनिकता को पूरी तरह से अपना सकता है।

आधुनिकता और परंपरा का सफल समन्वय

महाकुंभ 2025 को ’डिजिटल कुंभ’ के रूप में जाना गया, जहां आधुनिक तकनीक और प्राचीन आस्था का अनूठा समन्वय देखने को मिला। प्रयागराज में जमीन से 18 फीट ऊपर बनी टेंट सिटी ने श्रद्धालुओं को महाकुंभ का विहंगम दृश्य देखने का अवसर प्रदान किया। यह पहल न केवल हमारी परंपराओं को आधुनिक तरीके से प्रस्तुत करने में सफल रही, बल्कि युवा पीढ़ी को भी अपनी संस्कृति से जोड़ने का माध्यम बनी। 

श्रद्धालुओं की सुविधा के लिए वर्चुअल गाइडेंस, डिजिटल मैप्स और मोबाइल ऐप का उपयोग किया गया, जिससे यह स्पष्ट हो गया कि भारत आधुनिकता को अपनाने के साथ-साथ अपनी मूल पहचान को भी बनाए रख सकता है। इस आयोजन ने यह सिद्ध कर दिया कि तकनीक और परंपरा एक-दूसरे के विरोधी नहीं, बल्कि पूरक हैं।

आध्यात्मिक ज्ञान का प्रसार

महाकुंभ 2025 केवल स्नान का पर्व नहीं था, बल्कि यह आध्यात्मिक ज्ञान की युगानुकूल व्याख्या का भी पर्व बन गया। इस आयोजन ने लाखों लोगों को चार पुरुषार्थ (धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष) और चार आश्रमों (ब्रह्मचर्य, गृहस्थ, वानप्रस्थ, संन्यास) के महत्व को समझने का अवसर दिया। 

संत समागम, प्रवचन और योग शिविर जैसे कार्यक्रमों ने लोगों को आंतरिक शांति और ज्ञान प्रदान किया। महाकुंभ ने यह संदेश दिया कि जीवन का वास्तविक उद्देश्य केवल भौतिक सुखों की प्राप्ति नहीं, बल्कि आत्मिक शांति और मोक्ष की प्राप्ति है। इस आयोजन ने हिंदू समाज को अपने जीवन मूल्यों को आधुनिक संदर्भ में समझने और अपनाने में मदद की।

विश्व स्तर पर भारतीय संस्कृति का प्रसार

महाकुंभ 2025 को विश्वव्यापी आकर्षण का केंद्र बनाने के लिए थाईलैंड, इंडोनेशिया, मॉरिशस समेत विभिन्न देशों में रोड शो और सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन किया गया। इन कार्यक्रमों ने दुनियाभर में भारत की संस्कृति, आध्यात्म और आस्था का प्रचार-प्रसार किया। 

महाकुंभ ने भारत की प्राचीन सभ्यता और आध्यात्मिक ज्ञान को विश्व के सामने प्रस्तुत किया, जो न केवल भारतीयों के लिए, बल्कि विदेशियों के लिए भी आकर्षण का केंद्र बना। इस आयोजन ने भारत की सॉफ्ट पावर को मजबूत किया और विश्व भर में भारतीय संस्कृति के प्रति लोगों की रुचि को बढ़ाया। महाकुंभ 2025 ने साबित किया कि भारत की संस्कृति और आध्यात्मिकता का आकर्षण सार्वभौमिक है।

हिंदू समाज के लिए महत्वपूर्ण सीख

महाकुंभ 2025 ने हिंदू समाज को यह सिखाया कि आधुनिकता और परंपरा एक-दूसरे के विरोधी नहीं, बल्कि पूरक हैं। यह आयोजन प्रकृति से जुड़कर जीवन एवं जगत के रहस्यों के अनुसंधान का पर्व बन गया। महाकुंभ ने हमें यह सीख दी कि हमें अपनी जड़ों से जुड़े रहते हुए, आधुनिक तकनीक और विचारों को अपनाना चाहिए। इस आयोजन ने यह भी स्पष्ट किया कि जीवन में संतुलन बनाए रखना कितना महत्वपूर्ण है। हमें भौतिक सुखों के साथ-साथ आध्यात्मिक उन्नति पर भी ध्यान देना चाहिए। महाकुंभ 2025 ने हिंदू समाज को यह संदेश दिया कि हमारी संस्कृति और परंपराएं हमें आधुनिकता के साथ आगे बढ़ने से नहीं रोकतीं, बल्कि उसे और मजबूत बनाती हैं।

महाकुंभ 2025 ने अपने समापन के बाद भारत की सांस्कृतिक और आध्यात्मिक विरासत को एक नई पहचान दी। यह आयोजन न केवल एक धार्मिक उत्सव था, बल्कि यह भारत की प्राचीन परंपराओं और आधुनिक तकनीक का एक जीवंत उदाहरण बन गया। 

महाकुंभ ने साबित किया कि भारत अपनी संस्कृति और परंपराओं को संजोए रखते हुए भी आधुनिकता को पूरी तरह से अपना सकता है। इस आयोजन ने भारत की सॉफ्ट पावर को मजबूत किया और विश्व भर में भारतीय संस्कृति के प्रति लोगों की रुचि को बढ़ाया। 

महाकुंभ 2025 ने हमें यह सिखाया कि हमें अपनी संस्कृति और परंपराओं से जुड़े रहते हुए, आधुनिकता को अपनाना चाहिए। यह आयोजन भारत के लिए एक ऐतिहासिक सफलता थी, जिसने हमें गर्व और प्रेरणा दोनों प्रदान की।

लेकिन यह कुछ और भी कहता है। यह एक बिना शोर वाली क्रांति है। यह एक ऐसा बदलाव है जिसके बारे में कोई बात नहीं करता। अब भारत के हिंदू अपनी धार्मिक विरासत के लिए शर्मिंदा नहीं हैं। वे अपनी धार्मिक आस्था को गर्व से धारण करते हैं। 45 दिनों के इस महापर्व में किसी तरह की असहनशीलता दिखाई नहीं दी।

 पूर्ण धार्मिक सद्भाव से संपूर्ण आयोजन संपन्न हुआ। अपने धर्म को लेकर कहीं भी उग्र प्रदर्शन देखने को नहीं मिला। जरा कल्पना कीजिए कि इसका दशांश भी किसी दूसरे धर्म में होता तो क्या स्थिति हो सकती थी।

 इससे लिबरलों का सनातन धर्म को बदनाम करने का सारा प्रपंच ध्वस्त हो गया। ज्यादातर लोग जो इसमें आ रहे थे, वे निम्न मध्यमवर्गीय थे। उनके पास अपनी गाड़ी नहीं थी। ये वो लोग हैं जो सर्वे करने वाली एजेंसियों से हमेशा छूट जाते हैं। 

यही लोग हैं जो भारत की वास्तविक आत्मा हैं। जो लोग सनातन को मिटाने की बात करते हैं, उन्हें इस बात से सीख लेनी चाहिए कि वो क्या सोचते हैं। असली भारत कैसे सोचता है।

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