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क्या ‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ : मोदी 3.0 का सबसे बड़ा मास्टरस्ट्रोक

आजादी के बाद के शुरुआती दो दशकों तक भारत में लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ कराए जाते थे। 1951-52 की सर्दियों में हुए पहले आम चुनाव से लेकर 1967 तक, देश ने लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के चुनावों को एक साथ होते देखा। लेकिन बाद में राजनीतिक और प्रशासनिक जटिलताओं के कारण इस व्यवस्था को समाप्त कर दिया गया।

अब, 62 साल बाद, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अगुवाई में ‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ (एक राष्ट्र, एक चुनाव) का विचार फिर से चर्चा में है। अगर इसे लागू किया गया, तो यह भारत के लोकतंत्र में एक ऐतिहासिक बदलाव साबित होगा और मोदी 3.0 का सबसे बड़ा मास्टरस्ट्रोक बन सकता है।

‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ पर मोदी की प्रतिबद्धता

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की नेतृत्व क्षमता और दूरदर्शिता ने ‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ के विचार को वास्तविकता में बदलने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम उठाए हैं। यह विचार केवल एक चुनावी प्रणाली नहीं है, बल्कि यह देश के राजनीतिक और प्रशासनिक ढांचे में स्थिरता लाने का एक प्रयास है। 

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस मुद्दे को उठाते समय बार-बार किया है कि यह स्पष्ट  बार-बार चुनाव होने से विकास कार्यों में रुकावट आती है और संसाधनों का सही उपयोग नहीं हो पाता।

उनकी सरकार ने पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में एक समिति का गठन किया, जिसने 18,626 पन्नों की विस्तृत रिपोर्ट प्रस्तुत की। इस रिपोर्ट में ‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ को लागू करने के लिए आवश्यक संवैधानिक संशोधनों का सुझाव दिया गया है। मोदी का यह संकल्प न केवल उन्हें एक दूरदर्शी नेता के रूप में स्थापित करता है, बल्कि यह भी दर्शाता है कि वे भारत के राजनीतिक परिदृश्य को स्थिरता प्रदान करने के लिए कितने गंभीर हैं।

मोदी सरकार 2029 से पहले इस विचार को लागू करने की योजना बना रही है। इसका मतलब होगा कि लोकसभा और राज्यों की विधानसभाओं के चुनाव एक साथ कराए जाएंगे। यह प्रधानमंत्री मोदी के लंबे समय से चले आ रहे विजन का हिस्सा है। दरअसल, जब मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री थे, तभी से उन्होंने ‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ की वकालत करनी शुरू कर दी थी।

2014 में प्रधानमंत्री बनने के बाद भी, मोदी ने कई मौकों पर यह मुद्दा उठाया। उनका मानना है कि बार-बार चुनाव होने से जनता के पैसे की बर्बादी होती है और विकास कार्य बाधित होते हैं। 

इस साल एक इंटरव्यू में मोदी ने कहा था, “मैं हमेशा कहता हूं कि चुनाव केवल तीन-चार महीने के लिए होने चाहिए। राजनीति पांच साल तक नहीं चलनी चाहिए। इससे लॉजिस्टिक्स और धन की बचत होगी।”

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हमेशा राष्ट्रीय हित को पार्टी हित से ऊपर रखा है, जो भारतीय राजनीति में एक अनूठा दृष्टिकोण है। उन्होंने बार-बार यह स्पष्ट किया है कि सरकारी निर्णयों का आधार केवल राष्ट्र की भलाई होना चाहिए। 

उदाहरण के लिए, उन्होंने प्रशासनिक अधिकारियों को निर्देशित किया है कि वे अपने हर निर्णय में राष्ट्रीय हित को प्राथमिकता दें.

मोदी का यह दृष्टिकोण न केवल उनके नेतृत्व की विशेषता है, बल्कि यह दर्शाता है कि वे राजनीतिक लाभ से परे जाकर देश के विकास के लिए प्रतिबद्ध हैं। उन्होंने कहा है कि चुनावों के समय भी राष्ट्रीय हित को ध्यान में रखना चाहिए, जबकि अन्य नेता अक्सर पार्टी के लाभ के लिए निर्णय लेते हैं.

उनकी सरकार ने कई सुधारों को लागू किया है जो स्पष्ट रूप से दिखाते हैं कि उनका ध्यान हमेशा देश की प्रगति और विकास पर केंद्रित रहा है। मोदी का यह दृष्टिकोण उन्हें अन्य नेताओं से अलग करता है और यह सुनिश्चित करता है कि भारत की दिशा हमेशा सकारात्मक रहे।

वन नेशन, वन इलेक्शन’ क्यों बंद हुआ?

57 साल पहले तक लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ होते थे। लेकिन 1967 के बाद से यह परंपरा समाप्त हो गई। इसके पीछे कई कारण थे, जिनमें सरकारों का समय से पहले गिरना और अस्थिर राजनीतिक हालात शामिल थे।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार ने इस विचार को फिर से लागू करने के लिए एक समिति बनाई थी। इस समिति की रिपोर्ट आने के बाद, इस पर गहराई से विचार किया जा रहा है। 

15 अगस्त 2024 को लाल किले से स्वतंत्रता दिवस के भाषण में भी पीएम मोदी ने कहा था, “बार-बार चुनाव देश की प्रगति में बाधा पैदा करते हैं।”

रामनाथ कोविंद समिति की रिपोर्ट

‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ पर विचार करने के लिए सितंबर 2023 में पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में एक समिति गठित की गई थी। इस समिति ने 14 मार्च 2024 को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को अपनी रिपोर्ट सौंप दी। 

यह रिपोर्ट 18,626 पन्नों की है और इसमें इस विचार को लागू करने के लिए कई सिफारिशें की गई हैं।

समिति ने सुझाव दिया है कि सभी राज्य विधानसभाओं के कार्यकाल को 2029 तक बढ़ाया जाए ताकि लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ कराए जा सकें। 

पहले चरण में, लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ कराए जाएं, जबकि दूसरे चरण में 100 दिनों के भीतर स्थानीय निकायों के चुनाव आयोजित किए जाएं।

राजनीतिक समर्थन और भविष्य का रास्ता

इस समिति के समक्ष 47 राजनीतिक दलों ने अपने विचार रखे थे, जिनमें से 32 दलों ने ‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ का समर्थन किया। भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) पहले से ही अपने घोषणापत्र में इस विचार का उल्लेख करती आई है। भाजपा के शीर्ष नेता और प्रवक्ता भी बार-बार इसकी वकालत कर चुके हैं।

विशेषज्ञों का मानना है कि यह सुधार न केवल चुनावी खर्चों को कम करेगा, बल्कि प्रशासनिक बाधाओं को भी दूर करेगा। अगर मोदी सरकार इसे लागू करने में सफल होती है, तो यह न केवल उनके नेतृत्व की दूरदर्शिता को दर्शाएगा, बल्कि भारतीय लोकतंत्र के इतिहास में एक नई गाथा लिखेगा।

इस विचार को लागू करने के लिए राजनीतिक दलों का समर्थन भी महत्वपूर्ण है।  विभिन्न राजनीतिक दलों से इस दिशा में सहयोग की अपील की है, जिससे यह स्पष्ट होता है कि वे सभी पक्षों को साथ लेकर चलने के लिए प्रतिबद्ध हैं। 

अगर यह योजना सफल होती है, तो यह न केवल चुनावी खर्चों को कम करेगी, बल्कि विकास कार्यों को गति भी देगी।

इस प्रकार, मोदी की नेतृत्व क्षमता और उनके द्वारा किए गए प्रयास ‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ को एक वास्तविकता बनाने में सहायक सिद्ध हो सकते हैं। उनके दृष्टिकोण से यह स्पष्ट होता है कि वे भारत के भविष्य को एक नई दिशा देने का प्रयास कर रहे हैं, जो कि भारतीय लोकतंत्र के इतिहास में एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हो सकता है।

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