आज मतदान है। आज दिल्ली की दिल्ली की किस्मत का फैसला होगा और 8 तारीख को इसका परिणाम आ जाएगा। वैसे, मैं कोई चुनाव विशेषज्ञ नहीं हूं, लेकिन अरविंद केजरीवाल के बयानों और उनके हाव-भाव को देखकर ऐसा लग रहा है कि वे परिणाम आने से पहले ही हार मान चुके हैं। जिस तरह से दिल्ली के शेर प्रवेश वर्मा जी ने नई दिल्ली विधानसभा क्षेत्र में बंधक बना रखा है, आप परिणाम आने दीजिए। वह हैरान कर देने वाला होगा।

वे न सिर्फ चुनाव हार रहे हैं, बल्कि बहुत बुरी तरह से चुनाव हार रहे हैं। चलिए इसका विश्लेषण करते हैं। 2020 के चुनाव में मुस्लिम वोट और ज्यादा अरविंद केजरीवाल से चिपक गया था। इसका प्रभाव 22 सीटों पर पड़ता है, जिसका नतीजा परिणाम पर भी देखने को मिलेगा, वे 67 सीटें थीं। एक दूसरा मतदाता समूह भी था जो कांग्रेस विरोधी था। वह मूलतः भाजपा और मोदी जी का समर्थक था। इस मतदाता समूह का व्यवहार विचित्र था; वह लोकसभा में तो मोदी जी के नाम पर वोट करता था, लेकिन विधानसभा चुनाव में अरविंद केजरीवाल को वोट करता था।
इन दोनों ही मतदाता समूहों में इस बार के चुनाव में बिखराव देखने को मिल रहा है। मुस्लिम मतदाता का दिल तो कांग्रेस के साथ है, लेकिन दिमाग कह रहा है कि आम आदमी पार्टी को वोट देना चाहिए।
झुग्गी-झोपड़ियों में रहने वाले दलित आम आदमी पार्टी के बड़े वफादार समर्थक रहे हैं, लेकिन इस बार इनमें भी बिखराव हो रहा है।
दलित मतदाता इस चुनाव में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने जा रहे हैं। इनके वोट तीन प्रमुख पार्टियों: आम आदमी पार्टी, भारतीय जनता पार्टी, और कांग्रेस के बीच विभाजित होने की संभावना है। सर्वेक्षण से पता चलता है कि मतदाता की भावना में महत्वपूर्ण बदलाव आ रहा है और उनका अरविंद केजरीवाल से मोह भंग हो रहा है। इनका असंतोष बढ़ रहा है क्योंकि कई वादे पूरे नहीं हुए हैं, विशेष रूप से मेला ढोने वाले और नगरपालिका श्रमिकों की स्थिति के संबंध में। सब आल्टर्न मीडिया द्वारा किए गए सर्वेक्षण में दलित मतदाताओं का अरविंद केजरीवाल का समर्थन 53 प्रतिशत से घटकर 44 प्रतिशत रह गया है। अरविंद केजरीवाल की पार्टी के लिए यह बड़ा झटका हो सकता है। तीन पार्टियों के बीच दलित वोटों का विभाजन संभावित रूप से उन लगभग 30-35 निर्वाचन क्षेत्रों के चुनाव परिणामों को महत्वपूर्ण रूप से प्रभावित कर सकता है। हैरानी की बात यह है कि दलितों का कुछ हिस्सा कांग्रेस को भी जाता दिखाई दे रहा है।
प्रधानमंत्री मोदी द्वारा दलितों और अत्यंत गरीब तबके के लिए किए जा रहे कामों से भी इस तबके का रूझान भाजपा की ओर बढ़ा है। इसके अलावा, शानदार बजट का भी मध्यम वर्ग का एक बड़ा हिस्सा जो अरविंद केजरीवाल को वोट देता था, वह भाजपा की ओर मुड़ रहा है।
कुल मिलाकर मेरा तर्क यह है कि जितने भी समर्थक समूह आम आदमी पार्टी के रहे हैं, वे अब पार्टी से छिटक रहे हैं। इसका बड़ा फर्क आपको चुनाव परिणामों में देखने को मिलेगा।
अब आते हैं मुख्य मुद्दे पर जो हमने इस आलेख के प्रारंभ में कहा था: नई दिल्ली से अरविंद केजरीवाल चुनाव हार रहे हैं। सरकारी कर्मचारियों का बड़ा वर्ग इस विधानसभा में इस बार भाजपा की ओर शिफ्ट हो रहा है। प्रवेश वर्मा जी को हर वर्ग से प्यार और समर्थन मिल रहा है। ये वे लोग हैं जो पिछले तीन चुनावों से अरविंद केजरीवाल से छले जाते रहे हैं। जिस तरीके से इन्होंने शीला दीक्षित को हरा कर आम आदमी पार्टी को दिल्ली में स्थापित कर दिया था, वहीं से माननीय प्रवेश वर्मा जी अरविंद केजरीवाल को हराकर दिल्ली में भाजपा की वापसी का रास्ता बुलंद करेंगे।
अरविंद केजरीवाल की भाव-भंगिमा से साफ है कि वे आत्मविश्वास खो चुके हैं। वे कुछ भी बोल रहे हैं और उनकी हताशा साफ दिखाई दे रही है। उन्हें अहसास हो चुका है कि वे कुछ भी कर लें, अब दिल्ली की जनता उन पर भरोसा नहीं करने वाली है।
इस बार का चुनाव केवल राजनीतिक प्रतिस्पर्धा नहीं है; यह दिल्लीवासियों की आकांक्षाओं और उम्मीदों का भी मामला है। लोगों ने बदलाव की उम्मीद में AAP को चुना था, लेकिन अब जब वे निराश हो रहे हैं तो यह स्पष्ट हो जाता है कि राजनीतिक स्थिरता केवल वादों पर निर्भर नहीं करती, बल्कि उन वादों को पूरा करने पर भी निर्भर करती है।
कभी यमुना में जहर मिलाने का आरोप लगाते हैं तो कभी पुजारियों को वेतन देने की बात करने लगते हैं, लेकिन उनका कोई भी दावा काम करता हुआ नहीं प्रतीत हो रहा है। यही वजह है कि मैं कह रहा हूं कि झाड़ू हटेगा और कमल खिलेगा!