Rahul Gandhi pushed BJP MP

राहुल गांधी की ‘असंसदीय’ आक्रामकता के राजनीतिक मायने

संसद परिसर में हुई हिंसक झड़प ने कांग्रेस नेता और नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी की असली चाल और चरित्र को सामने ला दिया है। इस घटना में भाजपा के दो सांसद, प्रताप चंद्र सारंगी और मुकेश राजपूत, गंभीर रूप से घायल हुए हैं। राहुल गांधी ने इन सांसदों को धक्का देकर गिरा दिया, जिससे उन्हें चोटें आईं। यह झड़प तब हुई जब भाजपा सांसद प्रदर्शन कर रहे थे और राहुल गांधी एवं अन्य कांग्रेस सांसद उनके सामने आ गए।

चुनाव में जनता का विश्वास न जीत पाने की कुंठा और इंडिया गठबंधन के नेताओं द्वारा राहुल गांधी की लीडरशिप पर लगातार सवाल उठाने के बाद ऐसा लगता है कि कांग्रेस के युवराज अपना मानसिक संतुलन पूरी तरह खो चुके हैं। यह घटना साबित करती है कि कांग्रेस कैसे अपनी जिम्मेदारियों से भागने और दूसरों पर आरोप लगाने में माहिर हो गई है।

हाल के चुनाव परिणामों ने कांग्रेस पार्टी की स्थिति को गंभीर रूप से कमजोर कर दिया है। महाराष्ट्र, झारखंड, हरियाणा और जम्मू-कश्मीर में मिली हार ने न केवल उनकी राजनीतिक ताकत को चुनौती दी है, बल्कि यह भी साबित किया है कि राहुल गांधी की नेतृत्व क्षमता पर सवाल उठने लगे हैं। जनता का विश्वास खोने के साथ-साथ कांग्रेस के भीतर भी उनके नेतृत्व को लेकर असंतोष बढ़ रहा है।

इंडिया गठबंधन ने भी राहुल गांधी की नेतृत्व शैली की आलोचना की है, जिससे यह स्पष्ट होता है कि अब कोई भी उन्हें गंभीरता से नहीं ले रहा है। उनकी अपारदर्शिता और असंगठित रणनीतियों ने पार्टी को और अधिक अस्थिर बना दिया है। भाजपा नेताओं का कहना है कि राहुल गांधी का आचरण और उनकी राजनीतिक सोच इस बात का संकेत हैं कि वे भारतीय राजनीति में एक प्रभावी नेता बनने के लिए तैयार नहीं हैं। इस घटना से उनकी छवि को और गहरा धक्का लगा है। उनकी छवि विदूषक वाली तो पहले से ही थी, अब उनकी छवि गुंडागर्दी वाली बन गई है।

कांग्रेस का यह आरोप कि भाजपा केवल ध्यान भटकाने की कोशिश कर रही है, हास्यास्पद है। वास्तव में, यह कांग्रेस ही है जो अपनी विफलताओं को छिपाने के लिए निरंतर नए विवादों को जन्म देती है। जब भी भाजपा किसी मुद्दे पर चर्चा करती है, कांग्रेस उसे भटकाने का प्रयास करती है। हाल ही में गृह मंत्री अमित शाह के बौद्धिक विचारों पर कांग्रेस का हमला इस बात का प्रमाण है कि वे अपनी असफलताओं को छिपाने के लिए किसी भी हद तक जा सकते हैं। लेकिन आप देखिए, कांग्रेस के युवराज और उनकी जो खास मंडली है वह समझने को तैयार ही नहीं है। घटना के बाद भी राहुल गांधी, मल्लिकार्जुन खड़गे और किसी भी नेता के चेहरे पर अफसोस के कोई भाव नहीं थे। बल्कि ऐसा लग रहा था कि वे इसकी पूरी तैयारी करके आए थे। संविधान पर हुई बहस में उनकी पूरी तरह कलई खुल गई। इसके बाद अडानी के मुद्दे पर भी विपक्ष ने उनका साथ नहीं दिया।

यह स्पष्ट है कि कांग्रेस अब जनता का विश्वास खो चुकी है और उनकी राजनीति केवल व्यक्तिगत लाभ के लिए रह गई है। राहुल गांधी का बयान कि भाजपा संविधान पर हमला कर रही है, एक और उदाहरण है कि कैसे कांग्रेस अपनी विफलताओं को दूसरों पर थोपने की कोशिश कर रही है।

राहुल गांधी की आक्रामकता के राजनीतिक मायने

कांग्रेस पार्टी, जो पिछले कुछ वर्षों में लगातार चुनावी हार का सामना कर रही है, अब अपने अस्तित्व के लिए संघर्ष कर रही है। उनके नेता राहुल गांधी का आचरण इस बात का प्रमाण है कि वे राजनीतिक नैतिकता से कितने दूर हैं।

जब भाजपा सांसदों ने उन्हें रोका, तो उनकी प्रतिक्रिया एक गुस्से में भरे व्यक्ति की तरह थी, जो यह दर्शाता है कि वे अपने व्यवहार को लेकर कितने असंवेदनशील हैं। भाजपा ने इस घटना को लेकर राहुल गांधी से माफी की मांग की है, और यह उचित भी है। एक नेता को अपने आचरण का उदाहरण पेश करना चाहिए, न कि गुंडागर्दी करना।

कांग्रेस के शहजादे राहुल गांधी जमीन से जुड़े हुए नेता नहीं हैं। उनकी पूरी राजनीतिक हैसियत गांधी परिवार के वारिस होने की वजह है। लेकिन समस्या यह है कि राहुल गांधी को न तो भारत की समझ है और न ही हिंदुओं की। वे राजनीतिक तौर पर 55 साल के होने के बावजूद भी परिपक्व नहीं हुए हैं।

अब इसका अंदाजा आप इसी बात से लगाइए कि लोकसभा चुनाव में सिर्फ 99 सीटें पाने के बावजूद भी उन्हें ऐसा अहसास दिलाया गया कि वे जीत गए हैं। वे अपने आप को हार कर जीतने वाला बाजीगर समझ रहे थे।

लेकिन पिछले 6 महीने में ही बदली हुई राजनीतिक परिस्थितियों ने उन्हें आटे-दाल का भाव याद दिला दिया। हरियाणा और महाराष्ट्र दोनों ही राज्यों में भाजपा से सीधी लड़ाई में उनकी पार्टी बुरी तरह चुनाव हार गई। बाकी दो राज्यों में क्षेत्रीय पार्टियां चुनाव जीत गईं और कांग्रेस को कुछ भी हासिल नहीं हुआ। इससे उनके अहंकार को गहरी ठेस लगी।

अब युवराज के सामने संकट यह है कि वे प्रधानमंत्री बनने की महत्वाकांक्षा पाले हुए हैं, लेकिन सीटें उतनी ला नहीं सकते। सवाल यह है कि कांग्रेस की सीटें बढ़ेंगी कहां। उत्तर प्रदेश, बिहार, महाराष्ट्र और तमिलनाडु जैसे राज्यों में बिना सहयोगियों के वे क्या कर सकते हैं। इंडिया गठबंधन के बिना वे कुछ कर नहीं सकते, लेकिन उन्हें छोड़ भी नहीं सकते।

उनके बिना वे कमजोर हो जाएंगे। अगली बार इसकी कोई गारंटी नहीं है कि क्षेत्रीय दल उन्हें इतना स्पेस देंगे और उन्हें इतनी ही सीटें आएंगी। ऐसा नहीं है कि ममता बनर्जी या अखिलेश यादव को यह पता न हो कि वे प्रधानमंत्री नहीं बन सकते हैं। 

लेकिन गठबंधन में राहुल गांधी के नेतृत्व पर सवाल उठाकर वे युवराज का मनोबल अवश्य तोड़ सकते हैं। और वे यही कर रहे हैं। और वे जिस मकसद से कर रहे हैं, उसमें सफल भी हो रहे हैं। 

इसका मतलब यह हुआ कि कांग्रेस पार्टी वर्तमान राजनीतिक परिस्थितियों में तो कभी सत्ता में नहीं आ सकती है। उसकी राजनीतिक जमीन सिकुड़ चुकी है और सिकुड़ती ही जा रही है।

इससे उनकी हताशा अब स्थायी कुंठा में बदल गई है। संसद में की गई धक्का-मुक्की और ऐसी हिंसक हरकत उनकी इसी हताशा का परिणाम है।

Authors:

श्री मनोज कुमार जैन एक समाजसेवी, राजनीतिज्ञ और शिक्षाविद हैं, जो वर्तमान में भारतीय जनता पार्टी से दिल्ली के मनोनीत निगम पार्षद हैं। ‘तरुण मित्र परिषद’ के अध्यक्ष के रूप में समाज कल्याण और शिक्षा के क्षेत्र में उनके योगदान को सराहा जाता है। श्री जैन का मानना है कि समाज का सशक्तिकरण शिक्षा और स्वास्थ्य के माध्यम से ही संभव है। वह लगातार भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठाते हुए एक स्वच्छ और विकसित दिल्ली के लिए समर्पित हैं। और पढ़ें…

विकास एक अनुभवी राजनीतिक लेखक और वरिष्ठ पत्रकार हैं, जिनका भारतीय राजनीति और सामाजिक मुद्दों पर गहरी पकड़ है। पिछले एक दशक से, उन्होंने राजनीति, नीतियों और जनसमस्याओं पर शोध और विश्लेषणात्मक लेखन के माध्यम से जनता को जागरूक किया है। उनकी लेखनी तटस्थ, तथ्यात्मक और प्रभावशाली होती है, जो पाठकों को सोचने पर मजबूर करती है। विकास ने विभिन्न प्रतिष्ठित समाचार पत्रों और पत्रिकाओं में काम किया है और राजनीतिक घटनाओं पर उनकी विशेषज्ञता को व्यापक रूप से सराहा गया है।

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